Thursday 11 April 2013

मोदी की जीत, मंदिर का निर्माण


" मोदी की जीत, मंदिर का निर्माण "


0 अटल नहीं, आडवाणी नहीं, अब मोदी बनाएंगे ‘‘ मंदिर ’’

00 नमो के सहारे ‘‘ रामजी ’’

000 मुद्दा एक ‘‘ राम मंदिर ’’

0000 गुजरात से चला नमो नमो ...

00000 अयोध्या में मंदिर नहीं, देश को अयोध्या बनाओं


सौगंध राम की खाते है, मंदिर वहीं बनाएंगे..., बच्चा बच्चा राम का, जन्मभूमि के काम का..., अयोध्या करती है आहवन, हाथ से कर मंदिर निर्माण..., जहां राम ने जन्म लिया, मंदिर वहीं बनाएंगे..., अ..अ...अयो...अयोध्या, राम की..., जैसे तमाम घोष (नारे) संघ की शाखाओं में लगाए जाते हैं। 1925 केशव बलिराम हेडगेवार जी के समय से ये परंपरा चली आ रही है। संघ के अधिकारी हो या स्वयंसेवक दोनों बडे़ जोशों-खरोश के साथ राम जी की जय लगाते है। 



       उन्हीं के बीच से नरेन्द्र दामोदरदास मोदी गुजरात के मुख्या आते है। मोदी संघ की नेकर-टोपी बचपन में ही पहन चुके है। दंड कहे या लाठी उन्हें बखुबी चलाना आता है। भलेही वो शाखा में हो या फिर गुजरात में। गुजरात 2002 के दंगों के बाद मोदी के विकास पहिए ने जोर पकड़ा। गुजरात को तीसरी बार जीत मोदी फिर मुख्या बने, तो क्या अब प्रधानमंत्री बनने की बारी है...? लगातार भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में मोदी की दावेदारी बढ़ती जा रही है। भाजपा के ही कुछ नेता उनसे चिंतित है क्योंकि एक तरफ उनकी बढ़ती उम्र का रोडा। देश भी युवा प्रधानमंत्री चाहता है। मोदी सभी एंगल से फिट नजर आते है। दूसरा यदि भाजपा 2014 में हारी तो हेट्रिक तय है और वापसी करना मुश्किल।

0000 मुद्दा एक ‘‘ राम मंदिर ’’ 

         राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ हो या फिर भाजपा। दोनों का मुद्दा एक ही है ‘‘ राम मंदिर ’’। मोदी ये दोनों ही पडाव पार कर चुके है। अब प्रधानमंत्री बन मंदिर बनाने की तैयारी है। ऐसा नहीं की मंदिर का मुद्दा नया है। इससे पहले भाजपा के कद्दावर नेता अटलबिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी इस काम को करने में असफल हुए है। आडवाणी भलेही प्रधानमंत्री नहीं बन पाए हो। लेकिन उन्होंने मंदिर बनाने के लिए कोई कसर नहीं छोडी। बात अटलबिहारी वाजपेयी की, तो उनकी गठबंधन की सरकार भी पूरे पांच साल चली थी। लेकिन मंदिर नहीं बना। जिसका खामियाजा 2004 में सत्ता से बेदखल हो कर चुकाना पड़ा था। तो क्या अब मोदी मंदिर बनाएंगे...? या फिर वही लाग-लपेट चलता रहेगा। सत्ता में आने के बाद अटल भूल गए थे। वैसे ही 2014 के बाद मोदी भुल जाएंगे। क्योंकि भाई गठबंधन की सरकार है। 


0000 गुजरात से चला नमो नमो ...

       नरेन्द्र मोदी आज वो शख्स बन चुके है, जिनकी चर्चा पूरे देश में हो रही है। युवा, महिलाएॅ, उद्योगपति सभी के मुंह पर नमो नमो है। गुजरात से चली नमो नमो की धून हिन्दुस्तान में गुंजने को है। माना भाई विकास गुजरात का हुआ है, लेकिन क्या उतनी तेजी से देश का विकास हो पाएगा...? राम के सहारे चलने वाली भाजपा विकास का डमरू बजा रही है। मोदी नमो नमो के सहारे चल पड़े है, क्या मोदी राम नाम भुल गए है...? या फिर सत्ता में आने के बाद चर्चा की जाएगी। 

0000 ज़रा सोचिए . . .

         राम आपके भी है और हमारे भी। राम भाजपा या किसी ओर जागीर नहीं है। मंदिर हमने भी बनाया है अपने घर में, लेकिन किसी की भावनाओं ठेस पंहुचाए बिना।  चाहे मंदिर बने... या मस्जि़द बने... क्या फर्क पड़ता हैं। राम दिल में है तो मंदिर की क्या जरूरत। ज़रा सोचिए उस पंक्ति को (श्रीराम रामचन्द्र कृपालु भजन मन...) जिसमें राम को बड़ा दयालु, बड़ा कृपालु बताया गया है। आपको पता है देश की दूसरी बड़ी जनसंख्या मुसलमानो की है। तो क्या दयालु-कृपालु भगवान ‘‘ श्री राम ’’ का मंदिर में उनकी भावनाओं को ठेस पंहुचाकर बनाया जा सकता है...? मंदिर बनने से मर्यादा पुरूषोत्तम क्या खुश होंगे....? और यदि ऐसा होता है तो क्यों न अयोध्या में मंदिर जगह पूरे देश को ही अयोध्या बना दिया जाए। मोदी की जीत होगी, राम का मंदिर बनेगा...। ये दो बडे़ सवाल है। मंदिर की आशा जनता को भी है। लेकिन बाबू ये ‘‘ राजनीति ’’ है।  


‘‘ मेरा अनुरोध है लेख पढ़ते वक्त दिल-दिमाग खुला रखे। आपके भले की बात कर मैं अपना स्तर नहीं गिरा सकता हूं। जो आप पढ़ रहे है कई बार मीडिया में इससे जुडी कुछ बात आ चुकी है। लेकिन कुछ मेरा नजरिया अलग है....। आज गुडी पडवा है नववर्ष की शुरूआत है और हेडगेवार जी का जन्म भी। आशा करता हूँ विचार अच्छे दिन आए है 2014 में कुछ अच्छा होगा। आप सभी को नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं ’’


Monday 4 March 2013

‘‘ क्रांतिकारी अफज़ल गुरू ’’


‘‘ क्रांतिकारी अफज़ल  गुरू ’’

- भगत और अफज़ल के एक विचार 

- मंजिल दोनों की एक ही ‘‘ फांसी ’’


      ‘‘ संसद भवन के हमलावर अफज़ल गुरू को 9 फरवारी को फांसी दी गई। फांसी देते-देते केन्द्र सरकार ने पूरे  साल 11 साल लगा दिए। फांसी का कुछ राजनीतिक दलों ने स्वागत किया। तो कुछ ने फांसी मे देरी का कारण पूछा, तो कुछ ने कहा देर आए, दूरूस्त आए। ’’

          पर इन सभी विचारों से एक जैसी बू का रही है। सभी अफज़ल को आतंकवादी मानते है। लेकिन मेरे हिसाब से उसे एक क्रांतिकारी भी कह सकते है। क्योकि अफज़ल गुरू और शहीद भगतसिंह में कोई ज्यादा अंतर या फर्क नहीं है। भगतसिंह ने अंग्रेज सरकार के अत्याचार से तंग आ कर, उनकी सभा मे बम फेंका था। हालांकि बम से कोई घायल या किसी की मौत नहीं हुई थी। वैसा ही काम 13 दिसंबर 2001 को अफज़ल ने किया। तो क्या गलत था। उसने देश की सरकार के अत्याचार से तंग आकर संसद भवन में हमला किया। जिसमें 15 लोगों की मौत हुई। इसमें 13-14 पुलिस कर्मी और एक पत्रकार कैमरामैन था। 























          यदि इन दोनों पहलू को देखा जाए तो ज्यादा फर्क नहीं आता है। लेकिन फिर भी भगतसिंह को ‘‘ शहीद ’’ कहा जाता है। तो वही अफज़ल को आतंकवादी मानते है। यदि भगतसिंह और अफज़ल  के विचार एक थे। काम एक था। तो फिर उसे क्रांतिकारी या शहीद अफज़ल गुरू क्यों न कहा जाए ?   



- क्या अंतर था भगत और अफज़ल में ..... 

                भगतसिंह अफज़ल 

1. देश की आज़ादी की मांग                     1. कश्मीर की आज़ादी की मांग
2. अंग्रेजों के अत्याचार से तंग 2. सरकार के अत्याचार से तंग
3. अंग्रेज सरकार का विरोध                     3. देश की सरकारी का विरोध
4. सभा में बम फेंका                              4. संसद में गोलियां चलाई
5. किसी की मौत नहीं हूई                          5. तेराह की मौत   
6. भगत, सुखदेव, राजगुरू पकडे गए 6. पांच पकड़े गए
7. फांसी दी गई                                    7. फांसी दी गई 

- जनता की उम्मीद 
अफज़ल गुरू ने संसद पर हमला कर देश के लोगों में अपनी एक जगह बनाई थी। 13 दिसंबर 2001 की घटना के बाद लोगों कहना था कि जहां देश के सबसे बडे़ लूटेरे या आतंकवादी बैठे है। वहां यदि 5 लोग घुस आए थे। जो कोई गलत नहीं था। उस समय तो लोगों ने यहां तक कहा था कि यदि कुछ नेताओं को मार भी दिया जाता, तो इससे कोई ज्यादा फर्क नहीं पड़ता। और न ही देश का का कोई ज्यादा बड़ा नुकसान नहीं होता। लोग अफज़ल को एक क्रांतिकारी की नज़र से देख रहे थें। उसे लोगों की उम्मीद बंधी थी, जिसे वो पूरा न कर सका।  

         यदि देश की जनता अफज़ल को क्रांतिकारी मानती थी। तो यहां सवाल यह उठता है कि फांसी देकर सरकार ने क्या हासिल किया ? सरकरार ने भी आखिर वही किया जो अंग्रेज सरकार ने भगतसिंह के साथ किया था। तो फिर अफज़ल को क्रांतिकारी क्यों न कहा जाए ?
         
          अफज़ल को फांसी दिए, पूरा एक महीने बीत चुका है। अब देश और पार्टियां नए मुद्दे ढूंढने में लगी है। नई राहे तलाश रही है। लेकिन जनता बेचारी भोली-भाली टकटकी बांधे देख रही है अपने किसी दूसरे शहीद के पैदा होने का रास्ता।

          वही इस बात में भी कोई दो राय नहीं है कि अफजल ने कई बेगुनाहों की जान ली थी। जिनका उससे कोई लेना-देना नहीं था। ऐसे गुनहगार को फांसी देना भी जरूरी था। और यदि देश में ऐसे देश द्रोही होंगे, तो उन्हें फांसी पर लटका देना ही चाहिए।

       ‘‘ लेख पढ़ने के बाद लोग मुझे गद्दार, सरकार विरोधी, देश द्रोही, नकारात्मक सोच, आदि तमाम नाम देंगे। मुझे परवाह नहीं है। क्यों ये मेरे विचार है। आपके विचार आपके साथ.... ’’

         " विचार मैंने भूपेन सर के असाइनमेंट ‘‘300 शब्दों का संपादकीय लिखो’’ में लिखे थे। विषय था अफज़ल गुरू की फांसी। " 

Monday 4 February 2013

- फतवों में गुम होता कश्मीर....


‘‘ फतवा-ए-कश्मीर ’’ 

- क्या अब धर्मगुरू चलाएंगे देश.... 

‘‘ हर दिन, हर रोज धर्मगुरू ऐसे बयान देते है कि, हमारा इस्लाम, हमारा हिन्दूधर्म, हमारी संस्कृति को नुकसान हो रहा है। इस बात से आप क्या समझते है कि अब धर्मगुरूओं के ही भरोसे देश चलेगा। ये धर्मगुरू नहीं धर्म के ठेकेदार है। ऐसे नहीं है कि कश्मीर में फतवा पहली बार जारी हो रहा है। इससे पहले भी लडकियों को बुर्का पहने, स्कूल जाने, मोबाइल देने, घर से बाहर जाने के लिए फतवे जारी हुए है और इन्हीं फतवों से ही कश्मीर गुम होता जा रहा है। जिसका न तो देश में कही प्रतिनिधित्व देखने को मिलता है। आखिर कब तक ‘‘ फतवा-ए-कश्मीर ’’ चलता रहेगा।’’


          आज ऐसे ही फतवों से अभिव्यक्ति आजादी पर धर्मगुरूओं का कब्जा हो गया है। इन्ही कि वजह से देश की बेटियों को अपने ही देश में टेलेंट दिखाने का मौका नहीं मिलता है।  ये न तो खुद जीते है और न ही दूसरों को जीने देते है। ऐसा ही फतवा भारत प्रशासित कश्मीर में पहला महिला रॉक बैंड बनाने वाली लड़कियों को धमकी के बाद अब फतवा का सामना करना पड़ रहा है। लडकियों ने आखिरकार अपना बैंड ‘‘ प्रगाश ’’ बंद करना पड़ा। 

- आइए देखते है क्या कहा....
           खबरों के अनुसार श्रीनगर के मुख्य मुफ्ती बशीरूद्दीन ने रॉक बैंड में शामिल लड़कियों के खलिाफ रविवार को बयान देते हुए कहा है कि ‘‘ इस्लाम में संगीत पर पाबंदी है और उन लड़कियों को अच्छी बातें सीखनी चाहिए। मैं गाने को गैर-इस्लामिक करार देते हुं। साथ ही मैं, लडकियों को गाना बंद करने की सलाह दी है।’’  

- बैंड का लाइव परफार्मेंस बंद 
          दिसंबर में यह बैंड लाइव परफॉर्मंस देकर सुर्खियों में आया था। इसने रॉक बैंड की कॉपीटिशन में पुरस्कार भी हासिल किया था। उसके बाद इन्हें फेसबुक और अन्य सोशल साइट्स पर धमकियां मिलने लगी थी। इस वजह से उन्होंने लाइव परफॉर्मंस बंद कर दिया। 

Friday 1 February 2013

कांग्रेस की उम्मीद और उम्मीदवार एक ही ‘‘ सिंधिया ’’



कांग्रेस की उम्मीद और उम्मीदवार एक ही 

‘‘ सिंधिया ’’ 

- सिंधिया और चैहान होंगे मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार


- दूर-दूर तक नहीं है दिग्विजय, भूरिया और पचौरी......

- शिवराज को सता रहा, कांग्रेस का भय 


केंद्र में राहुल गांधी और नरेन्द्र मोदी का नाम प्रधानमंत्री उम्मीदवार की दौड़ में पहले से चल रहा है। लेकिन अब मध्यप्रदेश के 2013 चुनाव में भी, दो दिग्गजों का आमना-सामना होना तय लगात है। भाजपा से शिवराज सिंह चैहान और कांग्रेस से ज्योतिर्दित्य सिंधिया का नाम है। 

         प्रदेश की राजनीति में भाजपा तीसरी बार जीतकर सत्ता में आना चाहती है। जिसमें उसका चेहरा शिवराज ही होंगे। वही कांग्रेस में भी मुख्या पद को लेकर खींच तान शुरू हो चुकी है। इसमें सिंधिया की दावेदारी को मजदूत माना जा रहा है। बाकी गुट की बात करें तो दिग्विजय सिंह का गुट उनके कार्यकाल के बाद ही उभर नहीं पाया है। इस दौड़ में प्रदेश अध्यक्ष कांतिलाल भूरिया का गुट दूर-दूर तक नज़र नहीं आ रहा है। ऐसे में उम्मीद और उम्मीदवार एक ही है सिंधिया। साथही सिंधिया के जरिए कांग्रेस सत्ता में वापसी भी कर सकती है।       

- दिग्विजय, भूरिया और पचैरी नहीं होंगे उम्मीदवार 
             यदि कांग्रेस अपना उम्मीदवार सिंधिया को नहीं बनाती है, तो तीसरी बार भाजपा को सत्ता में आने से कोई नहीं रोक सकता है। वही कांग्रेस का तीसरी बार सफाया होने से कोई उम्मीदवार नहीं बचा पाएगा। क्योंकि कांग्रेस नेता और प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह का कार्यकाल, खुद उनके कार्यकर्ता और जनता नहीं भुली है। वही अपने कार्यकाल में प्रदेश अध्यक्ष कांतिलाल भूरिया भी प्रदेश पर कुछ खास पकड़ बनाते नहीं दिखाई दिए। भूरिया से पहले प्रदेश अध्यक्ष रहे सुरेश पचैरी का भी कोई अता-पता नहीं है। ऐसे में एक ही नाम सामने है सिंधिया।  

- शिवराज को सता रहा, कांग्रेस का भय 
            भाजपा के मुख्या शिवराज ने भी गुरूवार को आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर चिंता जताई है। उन्होंने कार्यकर्ता से कहा है कि वे कांग्रेस को किसी भी कीमत पर कमजोर आकने की कोशिश न करें और न ही फीलगुड में रहें। उन्होंने कहा कि माहौल हमारे पक्ष में है, लेकिन सतर्क रहना होगा। इस बात से ये तो साफ है कि भाजपा की एक भूल, उन्हें सत्ता से पांच साल के लिए बेदखल कर सकती है। इसी के मद्दे नज़र शिवराज 2013 चुनाव को किसी कीमत पर हाथ से गवाना नहीं चाहते है। इसलिए वे समय-समय पर अपने कार्यकर्ताओं को मूल मंत्र देते रहते है। 
  
    


Wednesday 30 January 2013

- जब तक देश में ‘‘ नंदी जैसी गंदगी ’’....


000--- आशीष नंदी बनेंगे, पुलिस के बंदी ---000

- नंदी का बयान औछी सोच का उदाहरण.....


‘‘ यदि आशीष नंदी जैसे व्यक्ति इस तरह के बयान देंगे तो आप क्या कयास लगाएंगे। आशीष की उम्र 60 पार हो चुकी है। अब वे सठियांने लगे है। और यह बात सही नहीं है तो उन्हें ऐसा कहने की जरूरत क्यों पडी। आज आशीष को सिर्फ ओबीस और दलित समुदाय ही नज़र आ रहा है। बाकी सत्ता में बैठा सवर्ण समुदाय का क्या। मेरा किसी समुदाय कोई लेना-देना नहीं है। लेकिन इतना ही कहना चाहता हूं कि, ये जात-पात की राजनीति करने वाला को उल्टा लटका कर, यदि पुलिसया कार्यवाई की जाए तो भी कम ही है। ’’

                    जयपुर साहित्य महोत्सव में समाजशास्त्री व राजनीतिक मनोविज्ञानी आशीष नंदी द्वारा किए गए दलित विरोधी बयान की राजनीतिक हलकों में तीखी आलोचना हुई। बयान के कुछ घंटों बाद ही उनके खिलाफ धारा 506 (आपराधिक धमकी) और अनुसूचित जाति जनजाति पर उत्पीड़न रोकथाम अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया गया है। अब जल्द ही आशीष नंदी, पुलिस के बंदी होते दिखेंगे। इस कोई दो राह नहीं है।  

000 आइए देखते आशीष नंदी ने क्या कहा ....
‘‘ यह अभद्र और असंस्कृत बयान होगा। लेकिन यह सच है कि सबसे भ्रष्ट व्यक्ति ओबीसी, एससी और अब बड़े पैमाने पर एसटी से आ रहे हैं। और जब तक ऐसा होता रहेगा, भारतीय गणराज्य जिंदा रहेगा। उन्होंने कहा, मैं एक उदाहरण देना चाहूंगा। सबसे कम भ्रष्ट राज्य पश्चिम बंगाल है। पिछले 100 वर्षों में ओबीसी, एससी, एसटी वर्ग के लोग सत्ता के नजदीक भी नहीं पहुंचे। यह पूरी तरह से स्वच्छ राज्य है। ’’
             
                   अंत यह कहना चाहता हूं कि हम और हमारा संविधान जनता को तमाम एक समान अधिकार देता हो। लेकिन जब तक नंदी जैसी गंदगी देश में कुछ नहीं हो सकता है। भलेही नंदी ने बड़े-बड़े लेख, किताबें लिखी हो, लेकिन आज भी उनका ज्ञान कम ही है। और उनका बयान एक औछी सोच का उदाहरण है।   

Tuesday 29 January 2013


कम नहीं होगी ‘‘ राहुल और राजनाथ की चुनौती ’’

            कांग्रेस का नेतृत्व राहुल गांधी, तो भाजपा का नेतृत्व राजनाथ सिंह के हाथों आए अभी एकका दुका दिन नहीं हुए है। दोनों ने वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव को लेकर कमर भी कसना शुरू कर दिया है। कांग्रेस और भाजपा दोनों ही देश की बड़ी पार्टियां है। जो 2014 के चुनावों को बिल्कुल हल्के में नहीं लेना चाहती है। ऐसे में दोनों नवनियुक्त नेताओं के सामने चुनौती होगी कि वे इससे कैसे निपटेंगे। 


              राहुल गांधी ने एक आयोजन में जोरदार भाषण पढ़ कर कार्यकर्ताओं और नेताओं में नई उर्जा फूंकने की कोशिश हो। राहुल पिछले आठ-दस वर्षों से कांग्रेस में केंद्रीय भूमिका में रणनीति से काम कर रहे हैं। उनका हर कदम काफी तैयारियों वाला है। लेकिन भाजपा भी कांग्रेस से कम दिखने को तैयार नहीं है। इसके विपरीत, राजनाथ के नाम की चर्चा भी तब आई, जब आखिरी वक्त पर बढ़ता विरोध देखकर नितिन गडकरी ने खुद ही हथियार डाल दिए।
         
           यह भी एक संयोग है कि अगले लोकसभा चुनाव से पूर्व सवा साल में जिन नौ राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव होना है, उनमें से पांचों बडे़ राज्यों में कांग्रेस और भाजपा के बीच ही मुख्य लड़ाई है। इनके नतीजे भी अगले चुनाव के साथ इन दोनों नेताओं के कामकाज का अच्छा अंदाजा देंगे। राजनाथ सिंह के लिए पार्टी की गुटबाजी और अपना नेतृत्व मनवाने के साथ संघ से रिश्ते को संभालना आसान नहीं होगा, क्योंकि गडकरी के दौर में संघ्ज्ञ पूरी तरह हावी हो गयसा था। अब भी ऐसा दखल होता रहेगा, क्योंकि राजनाथ सिंह के अचानक अध्यक्ष बनने के पीछे भी संघ की पसंद एक बड़ा कारण है। 
            राजनाथ को एक चुनौती होगी कि वे संघ के दबाव में कोई गलत फैसला लेते है या नहीं, लेकिन नीतिगत मामलों में पार्टी की अलग पहचान बनाना व सुस्त पड़ी पार्टी को सक्रिय करना उनकी सबसे बड़ी चुनौती होगी। 

             वैसी राहुल के लिए भी चुनौतियां कम नहीं हैं। उन्हें यूपीए को तीसरी बार सत्ता में लाना है। यह काम किसी भी लोकतंत्र में बहुत मुश्किल होता है। मौजूदा यूपीए सरकार की मुश्किल यह है कि महंगाई और भ्रष्टाचार से जनता आजिज आ चुकी है। राहुल तीसरे जनादेष वाले अवसर पर ही अचानक मुख्य भूमिका में आए हैं, इसलिए यह काम और भी मुश्किल हो गया है। इस सरकार से लोगों की नाराजगी का अंदाज सोनिया गांधी और राहुल को भी बखुबी है। कांग्रेस के लिए राहत की बात यही है कि न तो अरविंद केजरीवाला की पार्टी जमती दिख रही है और न ही विपक्षी दल भाजपा भी अभी टक्कर देने की स्थिति में है। फिर भी, चुनौतियां तो हैं, जिन्हें राहुल समझ पाएंगे।    

Monday 10 December 2012

०००.... कलम पर वार.....०००


०००.... मीडिया और कानून को आँख दिखाती : मैडम मदेरणा 


०००.... मीडिया की गाड़ी सहित पत्रकार पर हमला 

(मामला साल भर पुराना हैं.....तभी मैने फेसबुक पोस्ट किया था.l हलाकि अब इस पर सीबीआई चल रही हैं,  )

---- आज से महज दो दिन पहेले मैडम ने कहा " न्यूज़ चेनल कुछ भी उल्टा-सीधा दिखा रहे हैं और अखबार भी गलत छाप रहे हैं. सभी न्यूज़ चेनल और अखबारों को बंद कर दो. इन्होने, हमारी इमेज ख़राब की हैं." तो बस अब क्या था... मैडम ने जो कहा था.हुबहू समर्थको ने दो दिन बाद ही सही उसे कर दिख
ाया. मीडिया की गाड़ी के साथ ई-टीवी पत्रकार पर भी हमला बोल दिया. ये महज पत्रकार पर हमला नही बल्कि देश के चोथे स्तंभ पर हमला हैं....हमारी लेखनी और कलम पर वार हैं.... 

----अब आए मैडम का परिचय करा दू....

जी हाँ, दोस्तों ये वही लीला मदेरणा है, जिनके मंत्री पति महिपाल मदेरणा भंवरी देवी सीडी कांड में फंसे हुए हैं. पहेल तो मदेरणा साहब, भंवरी से सम्बंध की बात से इंकार कर रहे थे, लेकिन सीडी जब मीडिया ने दिखाना शुरू किया, तब साहब धीरे-धीरे संबंध की बात स्वीकारने लगे. 

००० आज जब मंत्री जी पूरी तरह कांड में फंसने लगे तो बीमारी का बहाना कर अस्पताल जा पहूंचे. साथही सारी जिम्मेदारी समर्थको पर छोड़ दी, जिसे समर्थको ने बखूबी निभाया और मीडिया की गाड़ी के बाद पत्रकार पर हमला बोल दिया. 
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००० चट-पटी, लेकिन खास ००० 

....यदि, मैडम मदेरणा आपको अपनी छवी का इतना ही ख्याल था, तो क्या साहब को समझने में शर्म आ रही थी. अगर शर्म आ भी रही थी, तो कान में कह देती, साहब तो अपने ही हैं. यदि साहब समझ जाते तो इतना नुकसान नही होता. 
००० अंत में जरा सोचए दोस्तों आप पत्रकार हैं. 
कलम पर वार...हम पर वार... 
तो कब-तक चुप बैठोगे यार... 
जब-जब होगा, कलम पर वार...
तो कहो...हम लड़ेंगे - हम लड़ेंगे...
और अब करेंगे आर या पार.... 
कलम मेरी...आवाज आपकी...

---- एम.एस.मौर्य