Monday 4 March 2013

‘‘ क्रांतिकारी अफज़ल गुरू ’’


‘‘ क्रांतिकारी अफज़ल  गुरू ’’

- भगत और अफज़ल के एक विचार 

- मंजिल दोनों की एक ही ‘‘ फांसी ’’


      ‘‘ संसद भवन के हमलावर अफज़ल गुरू को 9 फरवारी को फांसी दी गई। फांसी देते-देते केन्द्र सरकार ने पूरे  साल 11 साल लगा दिए। फांसी का कुछ राजनीतिक दलों ने स्वागत किया। तो कुछ ने फांसी मे देरी का कारण पूछा, तो कुछ ने कहा देर आए, दूरूस्त आए। ’’

          पर इन सभी विचारों से एक जैसी बू का रही है। सभी अफज़ल को आतंकवादी मानते है। लेकिन मेरे हिसाब से उसे एक क्रांतिकारी भी कह सकते है। क्योकि अफज़ल गुरू और शहीद भगतसिंह में कोई ज्यादा अंतर या फर्क नहीं है। भगतसिंह ने अंग्रेज सरकार के अत्याचार से तंग आ कर, उनकी सभा मे बम फेंका था। हालांकि बम से कोई घायल या किसी की मौत नहीं हुई थी। वैसा ही काम 13 दिसंबर 2001 को अफज़ल ने किया। तो क्या गलत था। उसने देश की सरकार के अत्याचार से तंग आकर संसद भवन में हमला किया। जिसमें 15 लोगों की मौत हुई। इसमें 13-14 पुलिस कर्मी और एक पत्रकार कैमरामैन था। 























          यदि इन दोनों पहलू को देखा जाए तो ज्यादा फर्क नहीं आता है। लेकिन फिर भी भगतसिंह को ‘‘ शहीद ’’ कहा जाता है। तो वही अफज़ल को आतंकवादी मानते है। यदि भगतसिंह और अफज़ल  के विचार एक थे। काम एक था। तो फिर उसे क्रांतिकारी या शहीद अफज़ल गुरू क्यों न कहा जाए ?   



- क्या अंतर था भगत और अफज़ल में ..... 

                भगतसिंह अफज़ल 

1. देश की आज़ादी की मांग                     1. कश्मीर की आज़ादी की मांग
2. अंग्रेजों के अत्याचार से तंग 2. सरकार के अत्याचार से तंग
3. अंग्रेज सरकार का विरोध                     3. देश की सरकारी का विरोध
4. सभा में बम फेंका                              4. संसद में गोलियां चलाई
5. किसी की मौत नहीं हूई                          5. तेराह की मौत   
6. भगत, सुखदेव, राजगुरू पकडे गए 6. पांच पकड़े गए
7. फांसी दी गई                                    7. फांसी दी गई 

- जनता की उम्मीद 
अफज़ल गुरू ने संसद पर हमला कर देश के लोगों में अपनी एक जगह बनाई थी। 13 दिसंबर 2001 की घटना के बाद लोगों कहना था कि जहां देश के सबसे बडे़ लूटेरे या आतंकवादी बैठे है। वहां यदि 5 लोग घुस आए थे। जो कोई गलत नहीं था। उस समय तो लोगों ने यहां तक कहा था कि यदि कुछ नेताओं को मार भी दिया जाता, तो इससे कोई ज्यादा फर्क नहीं पड़ता। और न ही देश का का कोई ज्यादा बड़ा नुकसान नहीं होता। लोग अफज़ल को एक क्रांतिकारी की नज़र से देख रहे थें। उसे लोगों की उम्मीद बंधी थी, जिसे वो पूरा न कर सका।  

         यदि देश की जनता अफज़ल को क्रांतिकारी मानती थी। तो यहां सवाल यह उठता है कि फांसी देकर सरकार ने क्या हासिल किया ? सरकरार ने भी आखिर वही किया जो अंग्रेज सरकार ने भगतसिंह के साथ किया था। तो फिर अफज़ल को क्रांतिकारी क्यों न कहा जाए ?
         
          अफज़ल को फांसी दिए, पूरा एक महीने बीत चुका है। अब देश और पार्टियां नए मुद्दे ढूंढने में लगी है। नई राहे तलाश रही है। लेकिन जनता बेचारी भोली-भाली टकटकी बांधे देख रही है अपने किसी दूसरे शहीद के पैदा होने का रास्ता।

          वही इस बात में भी कोई दो राय नहीं है कि अफजल ने कई बेगुनाहों की जान ली थी। जिनका उससे कोई लेना-देना नहीं था। ऐसे गुनहगार को फांसी देना भी जरूरी था। और यदि देश में ऐसे देश द्रोही होंगे, तो उन्हें फांसी पर लटका देना ही चाहिए।

       ‘‘ लेख पढ़ने के बाद लोग मुझे गद्दार, सरकार विरोधी, देश द्रोही, नकारात्मक सोच, आदि तमाम नाम देंगे। मुझे परवाह नहीं है। क्यों ये मेरे विचार है। आपके विचार आपके साथ.... ’’

         " विचार मैंने भूपेन सर के असाइनमेंट ‘‘300 शब्दों का संपादकीय लिखो’’ में लिखे थे। विषय था अफज़ल गुरू की फांसी। "