Wednesday 30 January 2013

- जब तक देश में ‘‘ नंदी जैसी गंदगी ’’....


000--- आशीष नंदी बनेंगे, पुलिस के बंदी ---000

- नंदी का बयान औछी सोच का उदाहरण.....


‘‘ यदि आशीष नंदी जैसे व्यक्ति इस तरह के बयान देंगे तो आप क्या कयास लगाएंगे। आशीष की उम्र 60 पार हो चुकी है। अब वे सठियांने लगे है। और यह बात सही नहीं है तो उन्हें ऐसा कहने की जरूरत क्यों पडी। आज आशीष को सिर्फ ओबीस और दलित समुदाय ही नज़र आ रहा है। बाकी सत्ता में बैठा सवर्ण समुदाय का क्या। मेरा किसी समुदाय कोई लेना-देना नहीं है। लेकिन इतना ही कहना चाहता हूं कि, ये जात-पात की राजनीति करने वाला को उल्टा लटका कर, यदि पुलिसया कार्यवाई की जाए तो भी कम ही है। ’’

                    जयपुर साहित्य महोत्सव में समाजशास्त्री व राजनीतिक मनोविज्ञानी आशीष नंदी द्वारा किए गए दलित विरोधी बयान की राजनीतिक हलकों में तीखी आलोचना हुई। बयान के कुछ घंटों बाद ही उनके खिलाफ धारा 506 (आपराधिक धमकी) और अनुसूचित जाति जनजाति पर उत्पीड़न रोकथाम अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया गया है। अब जल्द ही आशीष नंदी, पुलिस के बंदी होते दिखेंगे। इस कोई दो राह नहीं है।  

000 आइए देखते आशीष नंदी ने क्या कहा ....
‘‘ यह अभद्र और असंस्कृत बयान होगा। लेकिन यह सच है कि सबसे भ्रष्ट व्यक्ति ओबीसी, एससी और अब बड़े पैमाने पर एसटी से आ रहे हैं। और जब तक ऐसा होता रहेगा, भारतीय गणराज्य जिंदा रहेगा। उन्होंने कहा, मैं एक उदाहरण देना चाहूंगा। सबसे कम भ्रष्ट राज्य पश्चिम बंगाल है। पिछले 100 वर्षों में ओबीसी, एससी, एसटी वर्ग के लोग सत्ता के नजदीक भी नहीं पहुंचे। यह पूरी तरह से स्वच्छ राज्य है। ’’
             
                   अंत यह कहना चाहता हूं कि हम और हमारा संविधान जनता को तमाम एक समान अधिकार देता हो। लेकिन जब तक नंदी जैसी गंदगी देश में कुछ नहीं हो सकता है। भलेही नंदी ने बड़े-बड़े लेख, किताबें लिखी हो, लेकिन आज भी उनका ज्ञान कम ही है। और उनका बयान एक औछी सोच का उदाहरण है।   

Tuesday 29 January 2013


कम नहीं होगी ‘‘ राहुल और राजनाथ की चुनौती ’’

            कांग्रेस का नेतृत्व राहुल गांधी, तो भाजपा का नेतृत्व राजनाथ सिंह के हाथों आए अभी एकका दुका दिन नहीं हुए है। दोनों ने वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव को लेकर कमर भी कसना शुरू कर दिया है। कांग्रेस और भाजपा दोनों ही देश की बड़ी पार्टियां है। जो 2014 के चुनावों को बिल्कुल हल्के में नहीं लेना चाहती है। ऐसे में दोनों नवनियुक्त नेताओं के सामने चुनौती होगी कि वे इससे कैसे निपटेंगे। 


              राहुल गांधी ने एक आयोजन में जोरदार भाषण पढ़ कर कार्यकर्ताओं और नेताओं में नई उर्जा फूंकने की कोशिश हो। राहुल पिछले आठ-दस वर्षों से कांग्रेस में केंद्रीय भूमिका में रणनीति से काम कर रहे हैं। उनका हर कदम काफी तैयारियों वाला है। लेकिन भाजपा भी कांग्रेस से कम दिखने को तैयार नहीं है। इसके विपरीत, राजनाथ के नाम की चर्चा भी तब आई, जब आखिरी वक्त पर बढ़ता विरोध देखकर नितिन गडकरी ने खुद ही हथियार डाल दिए।
         
           यह भी एक संयोग है कि अगले लोकसभा चुनाव से पूर्व सवा साल में जिन नौ राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव होना है, उनमें से पांचों बडे़ राज्यों में कांग्रेस और भाजपा के बीच ही मुख्य लड़ाई है। इनके नतीजे भी अगले चुनाव के साथ इन दोनों नेताओं के कामकाज का अच्छा अंदाजा देंगे। राजनाथ सिंह के लिए पार्टी की गुटबाजी और अपना नेतृत्व मनवाने के साथ संघ से रिश्ते को संभालना आसान नहीं होगा, क्योंकि गडकरी के दौर में संघ्ज्ञ पूरी तरह हावी हो गयसा था। अब भी ऐसा दखल होता रहेगा, क्योंकि राजनाथ सिंह के अचानक अध्यक्ष बनने के पीछे भी संघ की पसंद एक बड़ा कारण है। 
            राजनाथ को एक चुनौती होगी कि वे संघ के दबाव में कोई गलत फैसला लेते है या नहीं, लेकिन नीतिगत मामलों में पार्टी की अलग पहचान बनाना व सुस्त पड़ी पार्टी को सक्रिय करना उनकी सबसे बड़ी चुनौती होगी। 

             वैसी राहुल के लिए भी चुनौतियां कम नहीं हैं। उन्हें यूपीए को तीसरी बार सत्ता में लाना है। यह काम किसी भी लोकतंत्र में बहुत मुश्किल होता है। मौजूदा यूपीए सरकार की मुश्किल यह है कि महंगाई और भ्रष्टाचार से जनता आजिज आ चुकी है। राहुल तीसरे जनादेष वाले अवसर पर ही अचानक मुख्य भूमिका में आए हैं, इसलिए यह काम और भी मुश्किल हो गया है। इस सरकार से लोगों की नाराजगी का अंदाज सोनिया गांधी और राहुल को भी बखुबी है। कांग्रेस के लिए राहत की बात यही है कि न तो अरविंद केजरीवाला की पार्टी जमती दिख रही है और न ही विपक्षी दल भाजपा भी अभी टक्कर देने की स्थिति में है। फिर भी, चुनौतियां तो हैं, जिन्हें राहुल समझ पाएंगे।